मंत्र-यंत्र और रत्न से भी होता है रक्तचाप जैसी बीमारी पर नियंत्रण- मनीष साईं

🔶🔶विश्व प्रसिद्ध वास्तु एवं ज्योतिष गुरु श्री मनीष साईं जी के अनुसार🔶🔶

🚩🚩मंत्र-यंत्र और रत्न से भी होता है रक्तचाप जैसी बीमारी पर नियंत्रण- मनीष साईं🚩🚩


हमारी संस्कृति में मंत्र-यंत्र और रत्न तीनो का बहुत महत्त्व रहा है। इतना अधिक कि कभी-कभी इनकी शक्ति पर विश्वास कर पाना कठिन हो जाता है। प्राचीनकाल में हमारे ऋषि मुनि और साधक विभिन्न मंत्र विभिन्न यंत्र और बीमारियों के अनुसार रत्नों के माध्यम से उपाय कर इच्छित फल को प्राप्त करते थे। मंत्र साधना में अनेक ऐसे मंत्र थे जिनके द्वारा व्यक्ति के रोग को दूर कर उसे स्वस्थ कर दिया जाता था। अनेक प्रकार के ऐसे यंत्र भी हमारे ऋषि मुनियो ने बनाए हैं जिनके माध्यम से बड़े से बड़े काम तथा बीमारियों से मुक्ति मिलती थी। मेडिकल एस्ट्रोलॉजी में रत्नों के माध्यम से ग्रहों के अनुसार रत्न पहन कर शरीर के सात चक्रों को नियंत्रित कर बीमारियों को ठीक किया जाता था। गुरुदेव श्री मनीष साईं जी के अनुसार यहां पर ऐसे मंत्र- यंत्र और रत्न का उल्लेख किया जा रहा है कि जिससे हम रक्तचाप रोक पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं।

🔶🔶ज्योतिष से रक्तचाप पर नियंत्रण और रोग मुक्ति-
रक्तचाप नामक रोग में जब किसी का रक्त अपनी सामान्य गति को छोड़कर तेज अथवा मंद गति से शीरा के माध्यम से मस्तिष्क में जाए तो रक्तचाप नामक रोग होता है। ज्योतिष में रक्त का प्रतिनिधि मंगल को माना गया है। जब पत्रिका में मंगल अशुभ अथवा पीड़ित स्थिति में हो अथवा चंद्र भी पीड़ित हो तो जातक को रक्त चाप होगा। पत्रिका में मंगल यदि पापी के साथ अकारक होगा अथवा अग्नि तत्व राशि में अग्नि ग्रह के साथ हो तो जातक को उच्च रक्त चाप का रोग होगा। यदि मंगल पीड़ित अथवा निर्बल होकर चंद्र के साथ हो अथवा अन्य किसी जलीय राशि में हो तो निम्न रक्तचाप होगा। इसके अतिरिक्त मंगल के अशुभ होने अथवा अशुभ भाव से रक्त विकार भी हो सकता है। किसी स्त्री की पत्रिका में यह स्थिति हो तो उसे रक्तचाप के साथ मासिक धर्म की समस्या भी होगी। मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी है जो काल पुरुष के सिर व गुप्तांगों का प्रतिनिधित्व करती है।इससे मुक्ति पाने के लिए आपको संकल्प लेना होगा कि रोग मुक्ति तक में मंगल गायत्री मंत्र के सवा लाख जाप अवश्य करूंगा तथा रोगमुक्त होने पर श्री मंगल देव तथा श्री हनुमान जी के नाम पर यह करूंगा। इसके पश्चात शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से लाल चंदन की माला रेड स्टोन की माला से मंगल गायत्री मंत्र 🔸ॐ अंगारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भोम: प्रचोदयात्🔸 का जाप प्रारंभ करें जप के बाद नित्य लाल गाय को चारा, गुड़, चने का भोग लगाकर बच्चों में प्रसाद बांटे। शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करें मंत्र पूर्ण होने पर दशांश हवन कर किसी युवा क्षत्रिय को भोजन करा कर लाल वस्त्र तथा दक्षिणा के साथ सवा किलो गुड व सवा किलो मसूर भी दान करें। अगर आपका रोग विकराल हो तो आप मंगल यंत्र भी धारण करें इस साधनाकाल में आप हर प्रकार के संयम का पालन अवश्य करें। कुछ ही समय में आप चमत्कारिक लाभ महसूस करेंगे सवा लाख मंत्र होने तक आप पूर्णत: रोग मुक्त हो जाएंगे।

🔶🔶 यंत्र से रक्तचाप पर नियंत्रण और रोग मुक्ति-

आप रक्तचाप के रोगी है, तो आप परेशान न हों, क्योंकि आपके पास मंत्र साधना के साथ यंत्र साधना भी स्वयं इसका इलाज है। यदि थोड़ी सी सावधानी बरत लें, तो फिर इसे आप आसानी से नियंत्रित कर सकते हैं। इस प्रयोग में थोड़ा खर्च जरूर होगा क्योंकि आपको ब्लड स्टोन सात चक्र पिरामिड बाजार से खरीदना होगा जितना पैसा आप दवाओं पर खर्च करते हैं उससे मात्र 1% की दर पर यह पिरामिड यंत्र आपको बाजार में मिल जाएगा। कई लोग कहते हैं कि दवाई बेअसर हो गई है तो आप दवाओं के साथ यदि इस यंत्र के प्रयोग को भी संपन्न करें, तो फिर यह स्थाई रूप से नियंत्रित हो सकता है। मंत्रों और यंत्रो में इतनी क्षमता होती है, कि यदि आप इनका प्रयोग उचित विधि से करें, तो पूर्ण फल प्राप्त होते ही हैं।


आप रक्तचाप निवारक ब्लड स्टोन सात चक्र पिरामिड लेकर उसे किसी तांबे की प्लेट में केसर से स्वस्तिक बनाकर स्थापित करें। उसके समक्ष 45 दिन तक नित्य 108 बार निम्न मंत्र का जाप करें, और 108 बार पीले कलर के पेपर पर लाल कलर के पैन से निम्नलिखित मंत्र को लिखे और ब्लड स्टोन सात चक्र पिरामिड के नीचे लिखा हुआ पेपर प्रतिदिन रखें ।

मंत्र
॥ ॐ क्षं पं क्षं ॐ ॥
प्रयोग समाप्त होने के बाद जो 45 पेपर एकत्र हुए हैं उन्हें लाल कपड़े में बांधकर नदी में प्रवाहित कर दें।

🔶🔶रत्न से रक्तचाप पर नियंत्रण और रोग मुक्ति-

हमारे प्राचीन शास्त्रों  में ग्रहों के अनिष्ट प्रभाव दूर करने के लिये रत्न धारण करने की परिपाटी निरर्थक नहीं है। इसके पीछे विज्ञान का रहस्य छिपा है और पूजा विधान भी विज्ञान सम्मत है। ध्वनि तरंगों का प्रभाव और उनका वैज्ञानिक उपयोग अब हमारे लिये रहस्यमय नहीं है। इस पर पर्याप्त शोध किया जा चुका है और किया जा रहा है। आज के भौतिक और औद्योगिक युग में तरह-तरह के रोगों का विकास हुआ है। रक्तचाप, डायबिटीज, कैंसर, ह्वदय रोग, एलर्जी, अस्थमा, माईग्रेन आदि प्रदूषण के कारण  यह माना जा सकता है कि औद्योगिक युग की देन है। इसके अतिरिक्त भी कई बीमारियां हैं, जिनकी न तो चिकित्सा शास्त्रों को जानकारी है और न उनका उपचार ही सम्भव हो सका है। हमारे ज्योतिष शास्त्र में बारह राशियां और नवग्रह अपनी प्रकृति एवं गुणों के आधार पर व्यक्ति के अंगों और बीमारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आधुनिक युग में कई ऐसी बीमारियां हैं जहां चिकित्सा विज्ञान भी फेल हो जाता है।
जन्मकुण्डली में छठा भाव बीमारी और अष्टम भाव मृत्यु का हे इसका विस्तृत वर्णन हमारे शास्त्रों में सर्व विदित है किंतु हम अज्ञानता के कारण और आधुनिक युग की चकाचोंध में इसे अंधविश्वास की श्रेणी में मान लेते हैं। किसी भी बीमारी पर उपचारार्थ व्यय भी करना होता है, उसका विचार जन्मकुण्डली के द्वादश भाव से किया जाता है। इन भावों में स्थित ग्रह और इन भावों पर दृष्टि डालने वाले ग्रह व्यक्ति को अपनी महादशा, अंतर्दशा और गोचर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं। अनुभव पर आधारित जन्मकुण्डली में स्थित ग्रहों से उत्पन्न होने वाले रोगों का वर्णन मेरी पुस्तकों में किया गया है। इन बीमारियों का कुण्डली से अध्ययन करके पूर्वानुमान लगाकर अनुकूल रत्न धारण करने, ग्रहशांति कराने एवं मंत्र आदि का जाप करने से बचा जा सकता है। ग्रह स्थिति से निर्मित होने वाले रोग एवं रत्नों द्वारा उनका उपचार आप भी अवगत हो सकते हैं आप हमारे संस्थान के WhatsApp नंबर पर बीमारी के अनुसार मंत्र यंत्र और रत्न की विधि को जान सकते हैं आज मैं आपको रक्तचाप की बीमारी पर नियंत्रण के लिए तथा रोग मुक्ति के लिए रत्न के बारे में बताने जा रहा हूं यह उपाय हजारों सालों से प्रचलित है।
 चिकित्सा विज्ञान में रक्तचाप होने के अनेकों कारण बताये गये हैं। चिंता, अधिक मोटापा, क्षमता से अधिक श्रम, डायबिटीज आदि। जन्मकुण्डली में शनि और मंगल की युति हों अथवा एक-दूसरे की परस्पर दृष्टि हो तथा छठे, आठवें और बारहवें भाव में चन्द्र का स्थित होकर पापग्रहों से दृष्ट होना रक्तचाप के योग देता है। चिंता और श्रम के कारण होने पर सफेद मोती, डायबिटीज और मोटापे के कारण होने पर पुखराज एवं शनि की साढ़े साती में रक्त चाप प्रारम्भ होने के कारण काला हकीक रत्न अंगूठी में धारण करने से लाभ होता है। उच्च रक्तचाप की स्थिति में बी.पी. स्टोन बायें हाथ की मध्य अंगुली में धारण करने से लाभ होता है। पूर्णमासी के दिन व्रत करें अैर बिना नमक का भोजन करने से भी बहुत लाभ होता है।

♦♦यदि आपको स्वास्थ संबंधी कोई परेशानी है तो आप साईं अन्नपूर्णा सोशल फाउंडेशन के नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं। परम पूज्य गुरुदेव श्री मनीष साई जी से आध्यात्मिक नुस्खों के जरिए बीमारियों से कैसे बचा जाए इसके उपाय जान सकते हैं। वास्तु, ज्योतिष एवं तंत्र विज्ञान से संबंधित भी परामर्श आप प्राप्त कर सकते हैं।
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