व्यापार में घाटा, जीवन में असफलता, लगातार कर्ज के बढ़ने का कारण, कहीं ऐसा तो नहीं, शनि आपका दे रहा है अनिष्टकारी प्रभाव: मनीष साईं

व्यापार में घाटा, जीवन में असफलता, लगातार कर्ज के बढ़ने का कारण, कहीं ऐसा तो नहीं, शनि आपका दे रहा है अनिष्टकारी प्रभाव: मनीष साईं
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🔶शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या के प्रभावों को खत्म करने के लिए इस लेख में है महत्पूर्ण उपाय.....

ज्योतिष शास्त्र की बात आती है तो  सबसे पहले जातक ज्योतिषी से पूछता है कि पंडित जी बताइए  कुंडली में मंगल एवं शनि की क्या स्थिति है। यह बात देखने में आती है कि शनि ऐसा ग्रह है, जिसके प्रति सभी को डर सदैव बना रहता है। आप जानना चाहते हैं कि कुंडली में शनि किस भाव में है, इससे आपके पूरे जीवन की दिशा, सुख, दुख आदि सभी बात निर्धारित हो जाती है।शनि ग्रह को कष्टप्रदाता तथा नुकसानदायक ग्रह के रूप में अधिक जाना जाता है। ज्योतिष में शनि को  अशुभ ग्रह माना गया है। शनि कुंडली के 6, 8, 12 भावों का कारक है। अगर व्यक्ति धार्मिक हो, उसके कर्म अच्छे हों वह जीवन को सेवा का मार्ग मानता है तो शनि से उसे अनिष्ट फल कभी नहीं देगा। शनि से बुरे,लालची, पापी एवं अनिष्टकारी को ही दंड देता हैं। प्रमुख ग्रंथ मत्स्य पुराण के अनुसार शनि की कांति इंद्रनीलमणि जैसी है। कौआ उसका वाहन है। उसके हाथों में धनुष बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा हैं। शनि का विकराल रूप भयानक है। वह पापियों के संहार के लिए तत्पर रहता है।

ज्योतिष शास्त्रों में वर्णन है कि शनि वृद्ध, तीक्ष्ण, आलसी, वायु प्रधान, नपुंसक, तमोगुणी और पुरुष प्रधान ग्रह है। इसका वाहन गिद्ध है। शनिवार इसका दिन है। स्वाद कसैला तथा प्रिय वस्तु लोहा है। शनि राजदूत, सेवक, पैर के दर्द तथा कानून और शिल्प, दर्शन, तंत्र, मंत्र और यंत्र विद्याओं का कारक है। ऊसर भूमि इसका वासस्थान है। इसका रंग काला है। यह जातक के स्नायु तंत्र को प्रभावित करता है। यह मकर और कुंभ राशियों का स्वामी तथा मृत्यु का देवता है। यह ब्रह्म ज्ञान का भी कारक है, इसीलिए शनि प्रधान लोग संन्यास ग्रहण कर लेते हैं।
शनि सूर्य का पुत्र है। इसकी माता छाया एवं मित्र राहु और बुध हैं। शनि के दोष को राहु और बुध दूर करते हैं।
शनि दंडाधिकारी भी है। यही कारण है कि यह साढ़े साती के विभिन्न चरणों में जातक को कर्मानुकूल फल देकर
उसकी उन्नति व समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। कृषक, मजदूर एवं न्याय विभाग पर भी शनि का अधिकार होता है। जब गोचर में शनि बली होता है तो इससे संबद्ध लोगों की उन्नति होती है।
शनि भाव 3, 6,10, या 11 में शुभ प्रभाव प्रदान करता है। प्रथम, द्वितीय, पंचम या सप्तम भाव में हो तो अरिष्टकर होता है। चतुर्थ, अष्टम या द्वादश भाव में होने पर प्रबल अरिष्टकारक होता है। यदि जातक का जन्म शुक्ल पक्ष की रात्रि में हुआ हो और उस समय शनि वक्री रहा हो तो शनि भाव बलवान होने के कारण शुभ फल प्रदान करता है। शनि सूर्य के साथ 15 अंश के भीतर रहने पर अधिक बलवान होता है। शनि कुंडली के अनुसार 36 एवं 42 वर्ष की उम्र में अति बलवान होकर शुभ फल प्रदान करता है। उक्त अवधि में शनि की महादशा एवं अंतर्दशा कल्याणकारी होती है। हजारों लाखो लोग शनि की साढ़ेसाती एवं ढैया से बहुत परेशान हैं, उन्हें उपाय समझ में नहीं आते हैं क्योंकि अलग-अलग ज्योतिष अपनी व्याख्या के अनुसार उन्हें समझाइश देते हैं वह कंफ्यूज हो जाते हैं ऐसे में वह क्या करें क्या नहीं मेरे इस लेख को पढ़कर वह अपने जीवन में इस कठिनाई से दूर हो सकते हैं इस लेख में शनि के मंत्र ,शनि चालीसा, शनि का 12 भावो में उपचार के निवारण, शनि किसके लिए बुरा है, शनि किसके लिए अच्छा है ,सब कुछ में प्रस्तुत कर रहा हूं यदि इसके बावजूद आप परेशान हैं कुछ रास्ता समझ में नहीं आ रहा है तो आप मुझसे संपर्क कर सकते हैं।

🔶शनि की साढ़े साती का जीवन पर प्रभाव कैसे जाने?

शनि की साढेसाती में शनि तीन राशियों पर गोचरवश परिभ्रमण करता है। तीन राशियों पर शनि के गोचर को साढेसाती कहते हैं। जब शनि जन्‍म या लग्‍न राशि से बारहवें, पहले व दूसरे हो तो शनि की साढ़े साती होती है। यदि शनि चौथे या आठवें हो तो शनि की ढैया होती है। तीन राशिओं के परिभ्रमण में शनि को साढे़ सात वर्ष लगते हैं। ढाई-ढाई वर्ष के तीन चरण में शनि भिन्‍न-भिन्‍न फल देता है। शनि की साढेसाती चल रही है यह सुनते ही लोग भयभीत हो उठते हैं और मानसिक तनाव में आ जाते हैं। ऐसे में उसके मन में आने वाले समय में होने वाली घटनाओं को लेकर तरह-तरह के विचार कौंधने लगते है। शनि की साढेसाती को लेकर परेशान न हों, शनि आपको अनुभवी बनाता है।

🔷शनि के तीन चरणों का प्रभाव किन राशियों में जानिए....

साढेसाती के विभिन्‍न चरणों का फल- तीनों चरणों हेतु शनि की साढेसाती निम्न रुप से प्रभाव डाल सकती है-
🔸प्रथम चरण - वृ्षभ, सिंह, धनु राशियों के लिये कष्टकारी होता है।
🔸 दूसरा चरण - मेष, कर्क, सिंह, वृ्श्चिक, मकर राशियों के लिये प्रतिकूल होता है।
🔸अन्तिम चरण- मिथुन, कर्क, तुला, वृ्श्चिक, मीन राशि के लिये कष्टकारी माना जाता है।🔸आपकी कुंडली में शनि बुरा है या अच्छा यह कैसे जाने..???

श्री मनीष साईं जी के अनुसार शनि के प्रभाव, गुण-दोष और साढ़े साती के विषय में…समझाने का एक प्रयास उपाय सहित —-

लोग बेवजह भयभीत हो उठते हैं कि शनिदेव न जाने क्या गजब ढाएगे? जिन लोगों की कुण्डली नहीं बनी होती उनके लिए यह बड़ा प्रश्न होता है कि शनि बुरा है या अच्छा यह कैसे जाने… मेरे आश्रम के नंबरों पर  हर बार ये प्रश्न सामने आता है  कि हमारी कुंडली सही नहीं है  और हम बहुत परेशानियों का सामना कर रहे हैं  कहीं ऐसा तो नहीं हमारा शनि खराब है। मेरे द्वारा उन्हें बताया जाता है कि शनि की प्रतिकूल अवस्था हमारी निदचर्या को भी प्रभावित करती है, जिसे नोट करके जाना जा सकता है कि कही शनि प्रतिकूल तो नहीं।
(1) यदि शरीर में हमेशा थकान व आलस भरा लगने लगे।
(2) नहाने-धोने से अरूचि होने लगे या नहाने का वक्त ही न मिले।
(3) नए कपड़े खरीदने या पहनने का मौका न मिले।
(4) नए कपड़े व जूते जल्दी-जल्दी फटने लगे।
(5) घर में तेल, राई, दाले फैलने लगे या नुकसान होने लगे।
(6) अलमारी हमेशा अव्यवस्थित होने लगे।
(7) भोजन से बिना कारण अरूचि होने लगें
(8) सिर व पिंडलियों में, कमर में दर्द बना रहे।
(9) परिवार में पिता से अनबन होने लगे।
(10) पढ़ने-लिखने से, लोगों से मिलने से उकताहट होने लगे, चिड़चिड़ाहट होने लगे।

🚩शनि की साढ़े साती

ज्योतिष शास्त्र के  नियम अनुसार सभी ग्रह गोचरवश एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते हैं शनि ग्रह भी इस नियम का पालन करता है। शनि जब आपके लग्न से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपनासमय चक्र पूरा करता है। यह समय चक्र साढ़े सात वर्ष का होता हैंज्योतिषशास्त्- में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है।शनि कीगति चुंकि मंद होती है अत: एक राशि को पार करने में इसे ढ़ाई वर्ष का समयलगता है । उदाहरण के तौरपर देखें तो माना लीजिए आपके लग्न से बारहवीं राशि है मेष है तो इस राशिमें जब शनि प्रवेश करेगा तब क्रमश: वृष और मिथुन तीन राशियों से गुजरेगाऔर अपना समय चक्र पूरा करेगा।साढ़े साती के शुरू होने को लेकरकई मान्यताएं हैं। प्राचीन मान्यता के अनुसार जिस दिन शनि का गोचर किसी विशेष राशि में होता है उस दिन से शनि की साढ़े साती शुरू हो जाती है। यह मान्यता हलांकि तर्क संगत नहीं है फिर भी प्राचीन होने के कारण व्यवहार में है।इसी संदर्भ में एक मान्यता यह भी है कि शनि गोचर में जन्म राशि से बारहवें राशि में प्रवेश करता है तब साढ़े साती की दशा शुरू हो जाती है और जब शनिजन्म से दूसरे स्थान को पार कर जाता है तब इसकी दशा से मुक्ति मिल जातीहै।तर्क के आधार पर ज्योतिषशास्त्री शनि के आरम्भ और समाप्ति को लेकर एक गणितीय विधि का हवाला देते हैं। इस विधि में साढ़े साती के शुरू होने के समय और समाप्ति के वक्त का ज़ायज़ा लेने के लिए चन्द्रमा के स्पष्ट अंशों की आवश्यकता होती है। चन्द्रमा को इस विधि में केन्द्र बिन्दुमान लिया जाता है। चुंकि साढ़े साती के दौरान शनि तीन राशियों से गुजरता है।अत: तीनों राशियों के अंशों को जोड़ कर दो भागों में विभाजित कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया मेंचन्द्र से दोनों तरफ अंश अंश की दूरी बनती है। शनि जबइस अंश के आरम्भ बिन्दु पर पहुचता है तब साढ़े साती का आरम्भ माना जाता है और जब अंतिम सिरे को अर्थात अंश को पार कर जाता है तब इसका अंत माना जाता है।शनि की साढ़े साती की शुरूआत को लेकर जहां कई तरह की विचार धाराए मिलती हैं वहीं इसके प्रभाव को लेकर भी हमारे मन में भ्रम और कपोल कल्पित विचारों का ताना बाना बुना रहता है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं कि शनि की साढ़े साती आज शुरू हो गयी तो आज से भी कष्ट और परेशानियों कीशुरूआत होने वाली है। ज्योतिषशास्त्री कहते हैं जो लोग ऐसा सोचते हैं वे अकारण ही भयभीत होते हैं वास्तव में अलग अलग राशियों के व्यक्तियों परशनि का प्रभाव अलग अलग होता है । कुछ व्यक्तियों को साढ़े साती शुरू होते ही कुछ समय पहले ही इसके संकेत मिल जाते हैं और साढ़े साती समाप्त होने से पूर्व ही कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और कुछ लोगों को देर से शनि काप्रभाव देखने को मिलता है और साढ़े साती समाप्त होन के कुछ समय बाद तक इसके प्रभाव से दो चार होना पड़ता है अत: आपको इस विषय में घबराने की आवश्यकता नहीं है।अंत में एक छोटी किन्तु महत्वपूर्ण बात यह कहूंगा कि साढ़े साती के संदर्भ में व्यक्ति के जन्म चन्द्र से द्वादश स्थान का विशेष महत्व है। इस स्थान का महत्व अधिक होने का कारण यह है कि द्वादश स्थान चन्द्र रशि से काफी निकट होता है। ज्योतिष शास्त्रों में द्वादश स्थान से काल पुरूष के पैरों का विश्लेषण किया जाता है तो दूसरी ओरबुद्धि पर भी इसका प्रभाव होता है। शनि के प्रभाव से बुद्धि प्रभावित होती है और हम अपनी सोच व बुद्धि पर नियंत्रण नहीं रख पाते हें जिसके कारण ग़लतकदम उठा लेते हैं और हमें कष्ट व परेशानी से गुजरना होता है। हमें याद रखना चाहिए कि साढ़े साती के दौरान मन और बुद्धि के सभी दरवाजे़ व खिड़कियां खोल देनी चाहिए और शांत चित्त होकर कोई भी काम और निर्णय लेना चाहिए।

🚩शनि की साढ़े साती शुभ भी...

शनि देव जब लाभ पहुंचाते हैं तो इतना लाभ पहुंचाते हैं कि लोगों से  धन संभाले नहीं संभलता किंतु शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर व्यक्ति के होश उड़ जाते हैं। लोगों के मन में बैठे शनि देव के भय का लुटेरे ज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। प्राचीन ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार शनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुत से लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभ सम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है।कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करना होता है। देखा जाय तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भीप्रदान करते हैं। शनि का प्रभाव सभी व्यक्ति पर उनकी राशि कुण्डली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता है अत: शनि के प्रभाव को लेकर आपको भयग्रस्त होने की जरूरत नहीं है।शनि किसी के लिए कष्टकर और किसी के लिए सुखकारी तो किसी को मिश्रित फल देने वाला होता है। ज्योतिष संबंधी हमारे शास्त्र बताते हैं यह ज्योतिष का गूढ़ विषय है जिसका उत्तर कुण्डली में ढूंढा जा सकता है। साढ़े साती के प्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि और चन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है। शनि की दशा के समय चन्द्रमा की स्थिति बहुत मायने रखती है। चन्द्रमा अगर उच्च राशि में होता है तो आपमें अधिक सहन शक्ति आ जाती है और आपकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है जबकि कमज़ोर व नीच का चन्द्र आपकी सहनशीलता को कम कर देता है व आपका मन काम में नहीं लगता है जिससे आपकी परेशानी और बढ़ जाती है।जन्म कुण्डली में चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है।
किसी जातक के पास अपना जन्म समय जन्म स्थान एवं जन्म दिनांक नहीं है तो  मैंने जो शनि नुकसानदायक है  या लाभदायक है इस लेख में  वर्णित किया है उसे देख कर  अंदाजा लगाया जा सकता है कि आप पर उसका प्रभाव है या नहीं  यदि प्रभाव है तो निम्नलिखित सामान्य उपाय मैं आपको बता रहा हूं यह करने से आप को लाभ होगा।
🔶शनि ग्रह दोष निवारण के सामान्य उपाय 🔶

शनिवार को पीपल के वृक्ष के चारों ओर सात बार कच्चा सूत लपेटे और यह क्रिया करते समय शनि के किसी भी एक मंत्र का जप करते रहें इसके बाद वृक्ष का धूप दीप से पूजन करें ध्यान रहे जब पूजा करें उस दिन बिना नमक का भोजन करें।
 🔹शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव के कारण शरीर पर चर्म रोग हो जाये शनिवार के दिन बिछुआ की जड़ को बाजू में बांधने से आपकी आशा के अनुरूप लाभ होता है।
🔹नीलम को शनि कारक माना जाता है इसका प्रभाव क्योंकि तत्काल प्रारंभ हो जाता है इसे धारण करते समय सावधानी रखें प्रत्येक शनिवार को वोट और पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय से पहले कड़वे तेल का दीपक जलाकर कच्चा दूध अर्पित करें शनिदेव जरुर पसंद होंगे।
🔹 ब्लैक से बना शनि शांति यंत्र घर में स्थापित करें और नित्य शनि मंत्र का जाप करें।
🔹कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं ।
🔹तेल में अपना मुख देख वह तेल दान करें ।
🔹लोहा, काला उड़द ,चमड़ा, काला सरसों आदि दान दें ।
🔹भगवान शिव की आराधना करें ।
🔹यदि कुंडली में शनि लग्न में हो तो भिखारी को तांबे का सिक्का या बर्तन कभी ना दें यदि देंगे तो पुत्र को कष्ट होगा।
 🔹यदि शनि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला आदि न बनवाएं।

🚩🚩कुंडली के अनुसार शनि किस भाव में है उसके अनुसार निम्नलिखित उपाय इस प्रकार हैं।🚩🚩

🔶प्रथम भाव में शनि के उपाय 🔶

🔹शनिवार के दिन न तो तेल लगाएं और नहीं तेल खाएं ।
🔹तांबे के बने हुए चार सांप शनिवार के दिन नदी में प्रवाहित करें ।
🔹भगवान शनि देव हनुमान जी के मंदिर में जा कर यह प्रार्थना करें कि प्रभु हमसे जो पाप हुए हैं उनके लिए हमें क्षमा करें हमारा कल्याण करो ।
🔹अपने ललाट पर प्रतिदिन दूध अथवा दही का तिलक लगाएं ।
🔹जब भी आपको समय मिले शनि दोष निवारण मंत्र का जाप करें शनि शांति यंत्र की पूजा अर्चना करें और एक माला शनि मंत्र की जपे।

🔶द्वितीय भाव में शनि के उपाय 🔶

🔹शनिवार के दिन किसी तालाब नदी में मछलियों को आटा डाले।
🔹 रात्रि में सोते समय दूध का सेवन ना करें ।
       शनिवार के दिन सिर पर तेल न लगाएं ।
🔹सांपों को दूध पिलाएं ।
🔹शराब का त्याग करें और मांसाहार भी ना करें।
 🔹2 रंग वाली गाय कभी भी ना पाले ।
🔹शनिवार को कड़वे तेल का दान करें ।
🔹शनिवार के दिन किसी तालाब नदी में मछलियों को आटा डाले
🔹रात्रि में सोते समय दूध का सेवन ना करें ।

🔶तृतीय भाव में शनि के उपाय🔶

 🔹रोज शनि चालीसा पढे तथा दूसरों को भी शनि चालीसा भेंट करें ।
🔹गले में शनि यंत्र धारण करें।
 🔹मकान के आखिर में एक अंधेरा कमरा बनवाएं ।
🔹आपके घर का मुख्य दरवाजा यदि दक्षिण दिशा की ओर है तो उसे बंद करवा दें ।
🔹घर के अंदर कभी भी हैंडपंप न लगवाएं ।
🔹घर में काला कुत्ता पालें तथा उसका हमेशा ध्यान रखें।

🔶 चतुर्थ भाव में शनि के उपाय🔶

 🔹काली भैंस पाले ।
🔹कच्चा दूध शनिवार के दिन कुवें में डालें ।
🔹एक बोतल शराब शनिवार के दिन बहती नदी में प्रवाहित करें।
🔹 कौवे को दाना खिलाए ।
🔹पराई स्त्री से अवैध संबंध कदापि ना बनाएं ।
🔹रात में दूध न पिए।
🔶पंचम भाव में शनि के उपाय🔶

🔹 मांस और शराब का सेवन ना करें ।
🔹काला कुत्ता पाले और उसका पूरा ध्यान रखें ।
🔹शनि शांति यंत्र की प्रतिदिन पूजा करें ।
🔹शनिदेव की पूजा करें ।
🔹शनिवार के दिन अनाज से अपने भार के 10 हिस्से के के बराबर वजन कराएं और दान करें ।
🔹बादाम नदी में प्रवाहित करने का कार्य करें।
🔹पुत्र के जन्मदिन पर नमकीन वस्तुएं बांटे।

🔶छटवे भाव में शनि के उपाय 🔶

🔹चमड़े के जूते बैग अटैची आदि का प्रयोग न करें।
 🔹प्रत्येक शनिवार व्रत करें बहते पानी में 4 नारियल शनिवार के दिन प्रवाहित करें।
 🔹प्रत्येक शनिवार के दिन काली गाय को घी से चुपड़ी हुई रोटी नियमित रुप से खिलाए ।
🔹शनि शांति यंत्र धारण करें।

🔶सप्तम भाव में शनि के उपाय 🔶

🔹शनि शांति यंत्र के सामने ॐ शं शनिश्चराय नमः का जाप करें।
🔹हर शनिवार के दिन काली गाय को घी से चुपड़ी हुई रोटी नियमित रुप से खिलाएं।
 🔹मिट्टी के पात्र में शहद भरकर खेत में मिट्टी के नीचे दबाएं खेत की जगह बगीचे में भी दबा सकते हैं ।
🔹अपने हाथ में घोड़े की नाल का शनि छल्ला धारण करें।

🔶अष्टम भाव में शनि के उपाय🔶

🔹 सोमवार के दिन चावल का दान करना आपके लिए उत्तम है ।
🔹काला कुत्ता पाले और उसका पूरा ध्यान रखें।
🔹शनिवार के दिन 8 किलो उड़द बहती नदी में प्रवाहित करें।
🔹गले में चांदी की चेन धारण करें ।
🔹शराब का त्याग करें और मांसाहार भी ना करें ।
🔹शनि शांति यंत्र के सामने शनि मंत्र की एक माला जपे।

🔶नवम भाव में शनि के उपाय 🔶

🔹साबुत मूंग मिट्टी के बर्तन में भरकर नदी में प्रवाहित करें।
🔹सवा छह रत्ती का पुखराज गुरुवार को धारण करें।
 🔹हर शनिवार के दिन काली गाय को घी से चुपड़ी हुई रोटी नियमित रुप से खिलाए ।
🔹शनिवार के दिन किसी तालाब नदी में मछलियों को आटा डालें ।
🔹पीले रंग का रुमाल सदैव अपने पास रखें ।
🔹कच्चा दूध शनिवार के दिन कुवें में डालें।

🔶दशम भाव में शनि के उपाय 🔶
🔹पीले लड्डू गुरुवार के दिन बाटे।
🔹अपने नाम से मकान या कोई भी प्रॉपर्टी ना रखें ।
🔹शनि शांति यंत्र धारण करें ।
🔹जब भी आपके पास समय हो शनि दोष निवारण मंत्र का निरंतर जाप करें ।
🔹आप अपने कमरे में सबसे अधिक पीले रंग का उपयोग करें ।
🔹पीले रंग का रुमाल सीधे हाथ की जेब में हमेशा रखें या हल्दी का टुकड़ा भी रख सकते हैं।

🔶11 वे भाव में शनि के उपाय 🔶

🔹पर स्त्री गमन ना करें ।
🔹शनि शांति यंत्र धारण करें ।
🔹कच्चा दूध शनिवार के दिन कुएं में डालें।
🔹कौवो को को दाना खिलाए।
🔹मित्र के वेश में छुपे शत्रुओं से सावधान रहें।
🔹शराब और मांस से दूर रहें ।
🔹शनि शांति यंत्र पूजा स्थल पर रख प्रतिदिन शनि मंत्र का जाप करें।
🔹 सूर्योदय से पूर्व शराब और कड़वा तेल मुख्य दरवाजे के पास भूमि पर गिराए।

🔶बारहवे भाव में शनि के उपाय🔶

🔹 शराब और मांस से दूर रहें।
 🔹कभी भी झूठ न बोलें ।
🔹चार सूखे नारियल बहते पानी में प्रवाहित करें ।
🔹शनि शांति यंत्र धारण करें।
🔹 शनिवार के दिन काले कुत्ते को गाय को रोटी खिलाएं।
 🔹शनिवार को कड़वे तेल काले उड़द का दान करें।
🔹प्रत्येक सोमवार सांप को दूध पिलाएं ।
🔹प्रत्येक सोमवार भगवान शिव का अभिषेक करें।

🔶शनि देव के मंत्र🔶

🔸शनि देव का तांत्रिक मंत्र

ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।  

🔸शनि देव के वैदिक मंत्र

ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीत

🔸शनि देव का एकाक्षरी मंत्र

ऊँ शं शनैश्चाराय नमः।

🔸शनि देव का गायत्री मंत्र

ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्।।

🔸भगवान शनिदेव के अन्य मंत्र

ऊँ श्रां श्रीं श्रूं शनैश्चाराय नमः।

ऊँ हलृशं शनिदेवाय नमः।

ऊँ एं हलृ श्रीं शनैश्चाराय नमः।

ऊँ मन्दाय नमः।।

ऊँ सूर्य पुत्राय नमः।।

🔶साढ़ेसाती से बचने के मंत्र🔶

शनि देव की साढ़ेसाती के प्रकोप से बचने के लिए शनि देव को इन मंत्रों द्वारा प्रसन्न करना चाहिए:

ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ।
उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात ।।

ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः।।

ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।।

🔸शनि चालीसा पढ़ने से होता है बहुत लाभ -मनीष साईं

हिंदू धर्म में  शनि देव  को दंडाधिकारी माना गया है। सूर्यपुत्र शनिदेव के बारे में लोगों के बीच कई मिथ्य हैं। लेकिन मान्यता है कि भगवान शनिदेव जातकों के केवल उसके अच्छे और बुरे कर्मों का ही फल देते हैं। शनि देव की पूजा अर्चना करने से जातक के जीवन की कठिनाइयां दूर होती है। शिव पुराण में वर्णित है कि अयोध्या के राजा दशरथ ने शनिदेव को "शनि चालीसा" से प्रसन्न किया था। शनि चालीसा निम्न है। शनि साढ़ेसाती और शनि महादशा के दौरान ज्योतिषी शनि चालीसा का पाठ करने की सलाह देते हैं।

🚩🚩श्री शनि चालीसा🚩🚩

॥दोहा॥

जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥

जयति जयति शनिदेव दयाला। करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै। माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला। टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके। हिय माल मुक्तन मणि दमके॥1॥

कर में गदा त्रिशूल कुठारा। पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष, छाया नन्दन। यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा। भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं। रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥2॥

पर्वतहू तृण होई निहारत। तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो। कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई। मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा। मचिगा दल में हाहाकारा॥3॥

रावण की गतिमति बौराई। रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका। बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा। चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी। हाथ पैर डरवाय तोरी॥4॥

भारी दशा निकृष्ट दिखायो। तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों। तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी। आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी। भूंजीमीन कूद गई पानी॥5॥

श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई। पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा। नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी। बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो। युद्ध महाभारत करि डारयो॥6॥

रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला। लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देवलखि विनती लाई। रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सजाना। जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥7॥

गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं। हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा। सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै। मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी। चोरी आदि होय डर भारी॥8॥

तैसहि चारि चरण यह नामा। स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं। धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी। स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै। कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥9॥

अद्भुत नाथ दिखावैं लीला। करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई। विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत। दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा। शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥10॥

॥दोहा॥

पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥

शनि को न्याय का देवता माना जाता है। शनि किसी भी कुंडली में सबसे लंबे समय तक प्रभावित करने वाले ग्रह माने जाते हैं। शनि की साड़ेसाती और ढैय्या में जातक को अपने कार्यों का उचित फल नहीं मिल पाता, दुर्घटनाओं और परेशानियों से उसका जीवन कष्टकारी हो जाता है। ऐसी स्थिति में शनि की शांति करवाने हेतु शनि शांति यंत्र का पूजन लाभदायक होता है। 

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