मंगल करें अमंगल तो करें ये उपाय- मनीष साईं

अशुभ मंगल करें अमंगल तो करें ये उपाय- मनीष साईं


मंगल ग्रह का हिंसा से विशेष संबंध माना जाता है। इसे कालपुरुष का पराक्रम माना गया है। प्राचीन भारतीय ऋषियो ने मंगल ग्रह का प्रभाव भारत देश में  अवंती नगर उज्जैन में सबसे अधिक माना है। बल के दृष्टिकोण से सौरमंडल में मंगल सूर्य से छठा ग्रह है। इसका प्रभाव शरीर के नाभि क्षेत्र पर होता है। मंगल की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण शक्ति का 1/10 भाग है हमारी जन्म कुंडली में नौ ग्रह माने गए हैं। वैसे तो सभी ग्रहों का अपना विशेष महत्व है। सभी ग्रहों का अपना अलग क्षेत्र रहता है और वे उन्हीं क्षेत्रों में हमें शुभ-अशुभ फल प्रदान करते हैं। इन ग्रहों में मंगल ग्रह का स्थान अतिमहत्वपूर्ण माना गया है। चूंकि मंगल को सौर मंडल का सेनापति कहा जाता है अत: इनके क्रोध अर्थात अशुभ होने पर व्यक्ति को दरिद्रता भोगनी पड़ सकती है। मंगल ग्रह का अशुभ प्रभाव विशेषकर वैवाहिक जीवन में बाधक सिद्ध होता हैं। मांगलिक दोष होने पर जातक का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहता और अलगाव हो जाता है।

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या द्वादश भाव में मंगल स्थित है तो ऐसे लोग मंगली माने जाते हैं। इन लोगों पर मंगल ग्रह अत्यधिक प्रभाव होता है।

मंगल अशुभ होने पर ये परेशानियां हो सकती हैं-

♦ भाई मित्र एवं पुत्रों से क्लेश।
♦ शत्रुओं से लड़ाई-झगड़ा।
♦ दांपत्य जीवन में तकरार।
♦अशुभ मंगल से ऋण बढ़ता है।
♦भूमि संबंधी कार्यों में नुकसान हो सकता है।
♦मकान बनाने में परेशानियां आती हैं।
♦शरीर में दर्द रहता है। रक्त संबंधी को बीमारी हो सकती है।
♦विवाह में देरी हो सकती है।

🔶🔶द्वादश भाव में मंगल का प्रभाव-

1. यदि मंगल प्रथम भाव में हो तो जातक स्वस्थ, सबल शरीर, आत्मबल से परिपूर्ण, पराक्रमी, साहसी, लंबी आयु वाला, पत्नी से सामान्य असंतुष्टि, जब तब रोग ग्रस्त, व्यवसाय में यदाकदा हानि उठाने वाला होता है।

2. यदि मंगल द्वितीय भाव में हो तो लंबी आयु, परंतु धन प्राप्ति करवाता है। विद्या, संतान, शरीर, व्यवहारिक संबंध, पत्नी, उन्नति आदि में व्यवधान उत्पन्न करता है किंतु उद्योग से सफलता प्राप्त होती है।
3. यदि मंगल तृतीय भाव में हो तो जातक पराक्रमी, साहसी, भाई-बहन के सुख से हीन, शत्रु पर विजय, साहस से कठिनाइयों पर विजय, उन्नत भाग्य, परंतु पिता संबंधी व्यवसाय आदि में कठिनाइयां एवं हानि का सामना करना पड़ता है।

4. यदि मंगल चतुर्थ भाव में हो तो पिता पक्ष से लाभ, पैतृक संपत्ति की प्राप्ति, राजकीय कार्यों से लाभ, अत्यधिक परिश्रम से स्वयं द्वारा प्राप्त लाभ, भूमि-भवन एवं पारिवारिक सुख में कमी चिंता एवं खिन्नता बनी रहती है।

5. यदि मंगल पंचम भाव में होतो अत्यधिक व्यय, जन्म स्थान से बाहर आजीविका, पिता पक्ष से लाभ, पैतृक संपत्ति या पुरातत्व से संबंधित कार्यों से लाभ, विद्या बुद्धि और संतान पक्ष से समस्याएं, पति या पत्नी पक्ष से समस्याएं होती है।

6. यदि मंगल षष्ठ भाव में हो तो जातक अधिक व्यय करने वाला, सम्मान पाने वाला, बाहरी स्थानों से लाभ प्राप्त करने वाला, प्रतिभावान, स्वाभिमानी, शारीरिक रूप से स्वस्थ, साहसी, पराक्रमी और शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाला होता है।

7. यदि मंगल सप्तम सप्तम भाव में हो तो राजकीय कार्यों से लाभ, पिता से लाभ, पैतृक संपत्ति की प्राप्ति, व्यापार में बाधा, धनाभाव, पत्नी पक्षी से कष्ट, सगे-संबंधियों से कटुता और अधिक परिश्रम करने पर भी कम लाभ होता है।

8. यदि मंगल अष्टम भाव में हो तो लंबी आयु, पिता पक्ष से लाभ, सौंदर्य में कमी, आय में कठिनाइयां, धन हानि, नेत्र रोग, रक्त विकार से कष्ट, परिवार से मानसिक चिंता, नीच कर्म में प्रवृत्ति भाई-बहन के सुख में कमी, व्याधि- पीड़ा तथा पत्नी से सामान्य संबंध होते हैं।

9. यदि मंगल नवम भाव में हो तो स्वास्थ्, पराक्रमी, कठिनाइयों पर परिश्रम से विजय प्राप्त करने वाला, भाग्योदय, बाहरी स्थानों पर संबंधों से लाभ, भाई-बहन के सुख में कमी, व्यय की अधिकता, माता पक्ष से कठिनाई, भूमि-भवन, धन आदि सुख में कमी होती है।

10. यदि मंगल दशम भाव में हो तो पिता से वैमनस्य, व्यापार में उन्नति, राजकीय कार्यों में सफलता एवं लाभ, स्वस्थ, सुखी, माता पक्ष से कठिनाई, साहसी, दूसरों के प्रति उपकार करने वाला, रत्न आभूषणों आदि से युक्त होता है।

11. यदि मंगल एकादश भाव में हो तो आय में वृद्धि, व्यापार में कठिनाई के साथ सफलता, साहसी, विद्या में कमी, संतान सुख में कमी, शत्रु पक्ष से परेशानी, सगे-संबंधी एवं परिवार से असंतोष होता है।

12. यदि मंगल द्वादश भाव में होतो शारीरिक स्वास्थ्य एवं सौंदर्य में कमी, व्यय की अधिकता, स्त्री सुख में कमी, शत्रु पक्ष से समस्या, भाई बहनों के सुख में कमी, व्यापार में कठिनाइयां तथा पराक्रम में वृद्धि होती है।

🔶🔶 मंगल ग्रह के विपरीत परिणाम प्राप्त हो रहे हों तो उनकी अशुभता को दूर करने के लिए निम्र उपाय करने चाहिएं-


1. यदि मंगल देव आपसे प्रसन्न नहीं हैं अत: इन्हें प्रसन्न करने के लिए सबसे उत्तम मार्ग है उज्जैन जाकर मंगल देव की भात पूजा। प्रति मंगलवार को मंगल देव के लिए विशेष पूजा-अर्चना कराएं। गरीबों की मदद करें और उन्हें खाना खिलाएं।

2. मंगल के देवता हनुमान जी हैं, अंत: मंदिर में लड्डू या बूंदी का प्रसाद वितरण करें। हनुमान चालीसा, हनुमत-स्तवन, हनुमद्स्तोत्र का पाठ करें। विधि-विधानपूर्वक हनुमान जी की आरती एवं शृंगार करें। हनुमान मंदिर में गुड़-चने का भोग लगाएं।

3. यदि संतान को कष्ट या नुक्सान हो रहा हो तो नीम का पेड़ लगाएं, रात्रि सिरहाने जल से भरा पात्र रखें एवं सुबह पेड़ में डाल दें।

4. पितरों का आशीर्वाद लें। बड़े भाई एवं भाभी की सेवा करें, फायदा होगा।

5. लाल कनेर के फूल, रक्त चंदन आदि डाल कर स्नान करें।

6. मूंगा, मसूर की दाल, ताम्र, स्वर्ण, गुड़, घी, जायफल आदि दान करें।

7. मंगल यंत्र बनवा कर विधि-विधानपूर्वक मंत्र जप करें और इसे घर में स्थापित करें।

8. मंगल मंत्र ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाया नम:।’ मंत्र के 40000 जप करें या कराएं फिर दशांश तर्पण, मार्जन व खदिर की समिधा से हवन करें।

9. मूंगा धारण करें। रेड स्टोन पावर ग्रिड के नीचे अपना फोटो रखें। पति पत्नी के दांपत्य जीवन में तकरार हो तो रोज क्वार्ट्ज पावर ग्रिड के नीचे दोनों का जोड़ी से फोटो रखें।

10. उपरोक्त मंत्र के अलावा मंगल के निम्र मंत्रों का जप भी कर सकते हैं-

ॐ अंगारकाय नम:।’

ॐ अंङ्गारकाय विद्यमहे, शक्ति हस्ताय’ धीमहि, तन्नौ भौम: प्रचोदयात्।।

♦♦अन्य उपाय : हमेशा लाल रुमाल रखें, बाएं हाथ में चांदी की अंगूठी धारण करें, कन्याओं की पूजा करें और स्वर्ण न पहनें, मीठी तंदूरी रोटियां कुत्ते को खिलाएं, ध्यान रखें, घर में दूध उबल कर बाहर न गिरे।

♦♦मंगल के लिए पूजन सामग्री- लाल मसूर की दाल, लाल वस्त्र, लाल गुलाल, दूध, दही, घी, शकर, शहद, पूजन सामग्री, गुड़, गेहूं, स्वर्ण, रक्त पुष्प, लाल कनेर के फूल। इन सभी चीजों से मंगल की पूजा करनी चाहिए। पूजा से मंगल के दोष कम हो सकते हैं।

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