जानिए नवग्रहों के व्यक्तित्व, शुभ-अशुभ फल, रोग और तत्व -मनीष साईं

जानिए नवग्रहों के व्यक्तित्व, शुभ-अशुभ फल, रोग और तत्व -मनीष साईं

ज्योतिष को जानना एवं समझना बहुत आसान है यदि आपको नवग्रहों के व्यक्तित्व, शुभ-अशुभ, फल रोग और तत्व के बारे में पता हो तो आप आसानी से अपनी कुंडली का स्वयं आकलन कर सकते हैं। कुंडली में 12 भाव होते हैं और प्रत्येक भाव का अपना एक मीनिंग होता है जिस भाव में यह ग्रह स्थित होते हैं उस भाव और इन ग्रहों के व्यक्तित्व को जोड़कर आकलन किया जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में क्या घटित होने वाला है। वैसे तो ग्रहों की युति शुभ अशुभ परिणाम की ओर इशारा करती है। किंतु ग्रहों की जानकारी से आप आसानी से कैलकुलेशन कर सकते हैं कि शुभ और अशुभ स्थितियां क्या है। विश्व प्रसिद्ध वास्तु,ज्योतिष एवं तंत्र गुरु मनीष साईं जी के अनुसार नवग्रह के कार्य, व्यक्तित्व, फल, एवं तत्व  के बारे में जानिए।

सूर्य-रक्त वर्ण,पूर्व दिशा का स्वामी,पित्त प्रकृति,पुरुष स्वभाव,व तेज ग्रह है। सूर्य आत्मा,स्वभाव,आरोग्यता,राज्य व राजसीय कार्य और देवालय का कारक है। यदि सूर्य जन्म कुडंली समस्त बल लियें हो तब जातक स्वस्थ,ताकतवर,मिलनसार,आकर्षक,बहुमुखी प्रतिभा,उत्साही,सौदर्य प्रेमी,कला पसंद, शरीर की दृष्टि से सबल होता है। स्वास्थ की दृष्टि से ह्रदय,नेत्र,रक्त,हड्डी,व पित्त रोग,शिरो रोग,अपचन,तेज,ज्वर,आदि का कारक होता । सूर्य से पिता से संबंध,सहयोग व पैतिृक संपत्ति राजसम्मान का विचार किया जाता हैं सूर्य मकर से छह राशि पर्यन्त चेष्टाबलि होता है।

चन्द्र- वायव्य दिशा का स्वामी,स्त्री स्वभाव,श्वेत वर्ण और जलीय ग्रह है। वातश्लेष्मा इसकी धातु और रक्त व मन का स्वामी है। माता,मन ,चित्त,जल,कल्पना,दया,संपत्ति का कारक है। चन्द्रमा से मनो रोग,अनिद्रा,भय,सर्दी,निमोनयां,शीतत व कफ समस्या,स्त्रीरोग,उदर रोग व व्यर्थ भ्रमण,अस्थिरता,व्यग्रता  आदि का विचार किया जाता हे। शुक्ल पक्ष की दशमी से कृष्ण पक्ष की पंचमी तक तेज ज्योति के कारण चन्द्रमा शुभ फल प्रदायी व कृष्ण पक्ष की षष्ठी से षुक्ल पक्ष की दशमी तक क्षीण चंद्रमा अशुभ फलदायी होता है। चन्द्रमा चतुर्थ स्थान में बली के कारण शुभ फल प्रदान करता है,मकर से छह राशियों में इसको चेष्टाबल प्राप्त होता है।

मंगल-मंगल दक्षिण दिशा का स्वामी,पुरुष जाति,पित्त प्रकृति,रक्त वर्ण व अग्नि तत्व प्रधान होता है। इस ग्रह को तेज ,पापी ,क्रोधी व कूर ग्रह माना जाता है जबकि शुभ मंगल धैर्य ,दूसरों की मदद करने वाला,खेल प्रिय, साहस, क्रोध, अग्नि,बिजली,इलेक्ट्रानिक का कारक होता है। यह ग्रह तीसरे व छठे भाव मे बली व द्वितीय भाव में निष्फल होता है। दशम स्थान में दिशा बल मिलता व चन्द्रमा के साथ चेष्टा बली होता है।

बुध- बुध ग्रह उत्तर दिशा का स्वामी,नपुंसक ,त्रिदोष प्रकृति,दूर्बा वर्ण,और पृथ्वी तत्व प्रधान होता है। यह ग्रह दूसरों ग्रहो से प्रभावी होता है जेसे शुभग्रहो के साथ शुभ व अशुभ ग्रहों से युति होने पर अशुभ हो जाता है। इस ग्रह से वाणी दोष,आंत्र रोग,संग्रहणी,अस्थमा,बुद्धिभ्रम,आलस्य,त्वचा रोग,तन्तु रोग आदि का विचार किया जाता है और बुध ग्रह ज्योतिष,वाणिज्य,दलाली,कानून,कला कारक होता है।

  बृहस्पति-गुरु ग्रह पूर्व ईशान अर्थात पूर्व-उत्तर दिशा का स्वामी,पुरुष जाति, स्वाभीमानी ,पीत वर्ण,आकाश तत्व है।बृहस्पति ग्रह पुत्र, गुरु,धर्म,भाग्य,स्वाभीमान का कारक होता है। यह ग्रह चर्बी,वसा और कफ वाला होता है अर्थात मोटापा देने वाला होता है व पाचन शक्ति से संबंध रखता है।

  शुक्र- शुक्र ग्रह आग्नेय अर्थात पूर्व-दक्षिण दिशा का स्वामी,स्त्री स्वभाव,श्याम गौर वर्ण प्रेम व सुन्दरता,मदनेच्छा,गानविद्या,शैया,पत्नी,काव्य,सुन्दर नैत्र,वाहन,कविता,संगीत सांसारिक सुख आदि  का कारक होता हे। चूकि शुक्र एक जलीय ग्रह है अत; शीत कफ,वीर्य आदी धातुओं का कारक होता है। मतांतर से दिन मे जन्म होने से माता का विचार शुक्र से किया जाता है।

शनि- शनि ग्रह पश्चिमम दिषा का स्वामी,नंपुशक,वात श्लेष्मिक प्रकृति,वायु तत्व व काले रंग प्रधान होता है। मतांतर से रात में जन्म होने से शनि पिता का विचार किया जाता है। इससे शारीरिक बल,आयु,विपत्ति,,रुकावट,मुसीबत,जीर्ण व वायु विकार रोग,गरीब,मजदूर,जमीनीसोच,वृद्धापन,मोक्ष ,ख्याति,वैराग्य,नौकर आदि का विचार किया जाता है।

राहु -राहु ग्रह नेऋत्य दिशा का स्वामी ,काला रंग,राजनीति,कूटनीति,झूंठ,झल कपट का कारक ,मनोरोग देने वाला एवं जिस ग्रह के साथ या भाव में रहता उसी के समान फल देने वाला होता है।   

केतु- केतु ग्रह भी नैऋत्य दिशा का स्वामी,काले सफेद रंग का,क्रूर प्रवत्ति,दुर्घटना देने वाला, चर्मरोग, मातामह, ताज, मोक्ष का कारक होता है एवं जिस ग्रह के साथ या जिस भाव में रहता उसी के समान फल देने वाला होता है।

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