रत्न पहनने से चमकता है भाग्य, जानिए रत्न धारण करने की विधि, सावधानियां एवं मुहूर्त



किस राशि के लिए कौन सा रत्न धारण करना चाहिए, रत्न के साथ  यदि कोई दूसरा रत्न धारण करते हैं  तो वह  लाभ पहुंचाएगा  या नुकसान यह भी जानना आवश्यक है। ज्याेतिष शास्त्र में रत्न पहनने के पहले कुछ निर्देश दिऐ गए हैं। रत्नों में 9 रत्न होते हैं जो ज्यादा धारण किये जाते है। सूर्य के लिए माणिक, चंद्रमा के लिए मोती, मंगल के लिए मूगा, बुध के लिए पन्ना, गूरू के लिए पुखराज,शुक्र के लिए हीरा, शनि के लिए नीलम, राहू के लिए गोमेद और केतू के लिए लहसुनियां।

रत्नों का  महत्व  आपके जीवन पर कैसा होगा , यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने रत्न को कैसे, किस दिन, और किस समय धारण किया है। रत्नो का धारण करने के लिए कुछ विशेष बात जो आपको शुभ फल मिलेगा। रत्न धारण करने का मंत्र क्या होगा किस नक्षत्र में रत्न को धारण करना है इसका उल्लेख भी विश्व प्रसिद्ध वास्तु ज्योतिष एवं तंत्र गुरु मनीष साईं जी ने बताया है। जानिए कौन से दिन किस ग्रह का रत्न कैसे धारण करते हैं और उस रत्न के साथ यदि कोई दूसरा रत्न धारण करते हैं तो वह लाभ देगा या नुकसान।

▪सूर्य को शक्तिशाली बनाने में माणिक्य का परामर्श दिया जाता है। कम से कम सवा पांच रत्ती या फिर अपने वजन के अनुसार माणिक को स्वर्ण की अंगूठी में, अनामिका अंगुली में रविवार के दिन पुष्य योग में धारण करना चाहिए।माणिक्य के साथ हीरा, गोमेद और नीलम में से कोई भी नहीं पहनना चाहिए।

मन्त्र : ॐ ह्सौः श्रीं आं ग्रहाधिराजाय आदित्याय स्वाहा॥


▪चंद्र ग्रह को मोती पहनने से शक्तिशाली बनाया जा सकता है। मोती कम से कम सवा तीन रत्ती का तो होना ही चाहिए, इसके चांदी की अंगूठी में शुक्ल-पक्ष सोमवार रोहिणी नक्षत्र में धारण करना चाहिए। मोती के साथ गोमेद और लहसुनिया पहनने से मोती से होने वाले फायदे का कोई असर नहीं हो पाता है।गोमेद और लहसुनिया राहु केतु के रत्न हैं जो मोती के साथ विपरीत असर डालते हैं।
मन्त्र : ॐ श्रीं क्रीं ह्रां चं चन्द्राय नमः॥

▪मंगल ग्रह को शक्तिशाली बनाने के लिए कम से कम पांच रत्ती का मूंगा सोने या ताम्र की अंगूठी में मंगलवार को अनुराधा नक्षत्र में सूर्योदय से एक घंटे बाद तक के समय में पहनना चाहिए।
मंगल के रत्न मूंगा के साथ हीरा, नीलम और गोमेद पहनना खतरनाक होता है। क्योंकि ये तीनों रत्न मंगल के विरोधी ग्रहों के हैं।
मन्त्र : ऐं ह्सौः श्रीं द्रां कं ग्रहाधिपतये भौमाय स्वाहा॥

▪बुध ग्रह का प्रधान रत्न पन्ना होता है, जो अधिकांश रूप में पांच रंगों में पाया जाता है। हल्के पानी के रंग जैसा, तोते के पंखों के समान रंग वाला, सिरस के फूल के रंग के समान, सेडुल फूल के समान रंग वाला, मयूर पंख के समान रंग वाला।
इसमें मयूर पंख के समान रंग वाला श्रेष्ठ माना जाता है, किंतु यह चमकीला और पारदर्शी होना चाहिए। कम से कम छह रत्ती वजन का पन्ना सबसे छोटी उंगली में प्लेटिनम या सोने की अंगूठी में बुधवार को प्रात: काल उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में धारण करना चाहिए।पन्ना और मोती का जोड़ा कभी भी सकारात्मक फल नहीं देता है। इससे शुभ की बजाय अशुभ फल की प्राप्ति होती है।

मन्त्र : ॐ ह्रां क्रीं टं ग्रहनाथाय बुधाय स्वाहा॥

▪गुरु (बृहस्पति) के लिए पुखराज सबसे उत्तम है। पांच, सात, नौ या ग्यारह रत्ती का पुखराज सोने की अंगूठी में तर्जनी अंगुली में गुरु-पुष्य योग में शाम के समय धारण करना सर्वोत्तम माना गया है। पुखराज के साथ हीरा और नीलम कभी नहीं पहनना चाहिए। हीरा शुक्र का रत्न है जबकि नीलम शनि का इसलिए गुरु के रत्न पुखराज के साथ इन्हें धारण करना शुभ नहीं रहता।

मन्त्र : ॐ ह्रीं श्रीं ख्रीं ऐं ग्लौं ग्रहाधिपतये बृहस्पतये ब्रीं ठः ऐं ठः श्रीं ठः स्वाहा॥

▪शुक्र ग्रह को शक्तिशाली बनाने के लिए हीरा (कम से कम दो कैरेट का) मृगशिरा नक्षत्र में बीच की अंगुली में धारण करना चाहिए। हीरा के साथ माणिक्य, मूंगा और पुखराज धारण करणा शुभफल नहीं देता।

मन्त्र : ॐ ऐं जं गं ग्रहेश्वराय शुक्राय नमः॥

▪शनि ग्रह की शांति के लिए नीलम उपयुक्त है। पांच, छह, सात, नौ अथवा ग्यारह रत्ती का नीलम मध्यमा अंगुली में शनिवार को श्रवण नक्षत्र में पंचधातु की अंगूठी में धारण करना चाहिए।
शनि के रत्न नीलम को कभी भी माणिक्य, मूंगा और पुखराज के साथ नहीं पहनना चाहिए।

मन्त्र : ॐ ह्रीं श्रीं ग्रहचक्रवर्तिने शनैश्चराय क्लीं ऐंसः स्वाहा॥

▪राहु के लिए छह रत्ती का गोमेद उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में बुधवार या शनिवार को धारण करना चाहिए। इसे पंचधातु में तथा मध्यमा अंगुली में पहनना चाहिए। गोमेद के साथ माणिक्य, मूंगा और पुखराज पहनने से लाभ की बजाय नुकसान होता है।


मन्त्र : ॐ क्रीं क्रीं हूं हूं टं टङ्कधारिणे राहवे रं ह्रीं श्रीं भैं स्वाहा॥

▪केतु के लिए छह रत्ती का लहसुनिया गुरु पुष्य योग में गुरुवार के दिन सूर्योदय से पूर्व धारण करना चाहिए। इसे भी पंचधातु में तथा मध्यमा अंगुली में पहनना चाहिए।केतु के रत्न लहसुनिया के साथ मोती पहनने से हानि होती है क्योंकि दोनों परस्पर विरोधी ग्रहों के रत्न है।

मन्त्र : ॐ ह्रीं क्रूं क्रूररूपिणे केतवे ऐं सौः स्वाहा॥

▪रत्न धारण करने के पहले जानने योग्य बात-

किसी भी रत्न को पहनने से पहले ध्यान रहें कि 4,9 या 14 तिथि तो नहीं है, क्योंकि रत्न को इन दिनो को धारण नहीं करना चाहिए। ध्यान रहें कि जिस दिन भी आप रत्न को धारण करे उस दिन गोचर को चंद्रमा आपकी रााशि से 4,8,12 में न हो या अमावस्या, ग्रहण और मकरसंक्रांति न हों ।

▪रत्न धारण करने का समय, धारण करते समय मुख की दिशा-

किसी भी रत्न को हमेशा दोपहर से पहले पूर्व की ओर मुख करके धारण करें। पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर आसन पर बैठकर ही रत्न धारण करें।

▪रत्न धारण करने का नक्षत्र-

रत्नों में  मोति मूंगा ऐसे रत्न है जो समुद्र से उत्पन्न हुुए हैं तो इन्हे रेवती, अश्विन, रोहिणी, चित्रा, स्वाति और विशाखा नक्षत्र में धारण करना शुभ होता है। याद रहे कि जो औरतें सुहागिन है वह रोहिणी, पुनर्वसु, पुष्प नक्षत्र में रत्न को न धारण करें । इन्हें रत्न को रेवती, अश्विन, हस्त, चित्रा और अनुराधा नक्षत्र में धारण करना चाहिए।

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Comments

  1. 28/05/1991
    16:06
    अहमदाबाद
    गुजरात
    जॉब और करियर के लिए कौनसा रत्न धारण करना चाहिए?

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